अभी वही है निजामे कोहना अभी तो जुल्मो सितम वही है
अभी मैं किस तरह मुस्कहराऊं अभी तो रंजो अलम वही है
नये गुलामो अभी तो हाथों में है वही कास-ए-गदाई
अभी तो गैरों का आसरा है अभी तो रस्मो करम वही है
अभी कहां खुल सका है पर्दा अभी कहां तुम हुए हो उरियां
अभी तो रहबर बने हुए हो अभी तुम्हारा भरम वही है
अभी तो जम्हूरियत के साये में आमरीयत पनप रही है
हवश के हाथों में अब भी कानून का पुराना कलम वही है
मैं कैसे मानूं कि इन खुदाओं की बंदगी का तिलिस्म टूटा
अभी वही पीरे-मैकदा है अभी तो शेखो-हरम वही है
अभी वही है उदास राहें वही हैं तरसी हुई निगाहें
सहर के पैगम्बारों से कह दो यहां अभी शामे-गम वही है
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